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उत्तराखंड में पलायन की सच्चाई – एक गांव की कहानी 🏔

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(@dbda)
जानकार साथी (Jankari Champion) Admin
Joined: 5 years ago
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“मुझे याद है जब हमारे गांव में हर घर से धुआं उठता था — रसोई से, चूल्हे से, ज़िन्दगी से। अब वो घर बंद हैं, और आँगन सूने।”
 
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उत्तराखंड के हजारों गांवों की यही कहानी है। लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं — रोज़गार की तलाश में, सुविधा की तलाश में, या फिर सिर्फ़ एक बेहतर भविष्य की उम्मीद में। यह केवल एक सामाजिक या आर्थिक बदलाव नहीं है, बल्कि एक संस्कृति का विस्थापन है।
 
 
🌾 गांव की वो पुरानी रौनक
कुछ साल पहले तक, इस गांव में 60 से ज्यादा घर आबाद थे। सुबह गायों की घंटियों की आवाज़, खेतों में काम करता हर परिवार, बच्चों की चहचहाहट — सब कुछ जीवंत था।
  • हर त्यौहार सामूहिक रूप से मनाया जाता था

  • गांव का स्कूल बच्चों से भरा होता था

  • मंदिर में भजन-कीर्तन की गूंज सुनाई देती थी

 
🚶‍♂️ पलायन की शुरुआत – क्यों हो गया गांव खाली?
धीरे-धीरे गांव बदलने लगा:
  • खेतों की कमाई घटती गई

  • सरकारी नौकरियाँ मुश्किल होती गईं

  • स्कूल में टीचर नहीं, अस्पताल में डॉक्टर नहीं

हर परिवार ने एक फैसला किया — “बच्चों को नीचे भेजना पड़ेगा, यहां कुछ नहीं रखा।”
 
 
🏚️ अब गांव में क्या बचा है?
अब वहां:
  • हर तीसरे घर में ताले लगे हैं

  • बचे हुए लोग बुजुर्ग हैं, जो ज़मीन नहीं छोड़ना चाहते

  • त्योहार अब WhatsApp पर मनते हैं, आँगन में नहीं

गांव की गलियाँ सूनी हैं, और रिश्तों में दूरी बढ़ गई है।
 
 
👨‍💼 रामू दा की कहानी – हर गांव की कहानी
रामू दा का बेटा विक्रम आज देहरादून में कॉल सेंटर में काम करता है। 12वीं के बाद नौकरी की तलाश में गया था। अब साल में एक बार आता है।

“घर की छत टपक रही है, लेकिन वो कहता है – पापा, मरम्मत बाद में करवा लेंगे। अभी टाइम नहीं है।”

रामू दा गांव में अकेले हैं — खेत भी सूने, मन भी।
 
 
💡 क्या है कोई समाधान?
ज़रूर है। लेकिन वो केवल योजनाओं से नहीं, नीयत से आएगा:
  • स्थानीय हैंडलूम, ऑर्गेनिक खेती, और होमस्टे जैसे रोजगार को बढ़ावा

  • गांवों में इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा

  • बच्चों को यहीं टेक-स्किल्स सिखाने की कोशिश

  • युवा लौटेंगे, अगर उनके लिए सिस्टम बने

 
🌱 एक उम्मीद, एक नई शुरुआत
उत्तराखंड के गांव खाली हो सकते हैं, लेकिन सपने अभी भी ज़िंदा हैं।
जरूरत है — भरोसे की, नेतृत्व की, और एकजुटता की।

“शहर की चकाचौंध में जो खो गया है, वो गांव की मिट्टी में आज भी मिल सकता है।”

 

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📝 आपके गांव में क्या हो रहा है? क्या आप भी पलायन के गवाह हैं? नीचे कमेंट करें या हमें अपनी कहानी भेजें।
 

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