कुमाऊं और गढ़वाल उत्तराखंड राज्य के दो विभाग हैं। ये दोनों ही पहाड़ी इलाके हैं और भाषा, संस्कृति, खानपान, रीति-रिवाज आदि में अलग-अलग होते हैं।
गढ़वाल के लोग अपनी भाषा में अधिक हैं जो गढ़वाली कहलाती है, जबकि कुमाऊं में कुमाऊंई भाषा बोली जाती है। दोनों भाषाएं अलग-अलग होती हैं और वे अपनी विशिष्ट वर्तनी और उच्चारण से पहचाने जाते हैं।
गढ़वाल में हिंदू धर्म के मंदिर और रामलीला के लोकनृत्य बड़ी संख्या में पाए जाते हैं जबकि कुमाऊं में चार धर्मों - हिंदू, मुस्लिम, सिख और च्रिश्चियन - के लोग रहते हैं और इनके अलग-अलग मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे भी होते हैं।
खानपान में भी अंतर होता है। गढ़वाल में चौखाट, जोली, सिंघौड़ा, मंडुआ और अरहर की दाल जैसी चीजें खाई जाती हैं। कुमाऊं में रस्सा, बांझ, अलू गुटका, सिद्धू और बाल मिठाई जैसी खाद्य पदार्थ खाए जाते हैं।
इसके अलावा, कुमाऊं का वस्तुनिष्ठ और सामाजिक जीवन भी गढ़वाल से थोड़ा अलग होता है। जबकि गढ़वाल अधिक उत्तरी भारतीय विरासत के साथ संबद्ध होता है, कुमाऊं दक्षिणी भारतीय विरासत से जुड़ा हुआ है। इसलिए, कुमाऊं राज्य की धरोहर बोलचाल की भाषा, रस्में, संस्कृति और भोजन में दक्षिण भारतीय प्रभाव दिखता है। वहीं, गढ़वाल क्षेत्र में नृत्य, संगीत, कला और विरासत के संबंध में उत्तर भारतीय प्रभाव दिखाई देता है।
अंततः, दोनों क्षेत्रों में आपसी समझदारी और भाईचारे का माहौल होता है। ये दोनों ही क्षेत्र भारत की विविधता और समृद्ध विरासत के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।
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