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हर त्यौहार सामूहिक रूप से मनाया जाता था
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गांव का स्कूल बच्चों से भरा होता था
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मंदिर में भजन-कीर्तन की गूंज सुनाई देती थी
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खेतों की कमाई घटती गई
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सरकारी नौकरियाँ मुश्किल होती गईं
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स्कूल में टीचर नहीं, अस्पताल में डॉक्टर नहीं
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हर तीसरे घर में ताले लगे हैं
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बचे हुए लोग बुजुर्ग हैं, जो ज़मीन नहीं छोड़ना चाहते
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त्योहार अब WhatsApp पर मनते हैं, आँगन में नहीं
👨💼 रामू दा की कहानी – हर गांव की कहानीरामू दा का बेटा विक्रम आज देहरादून में कॉल सेंटर में काम करता है। 12वीं के बाद नौकरी की तलाश में गया था। अब साल में एक बार आता है।“घर की छत टपक रही है, लेकिन वो कहता है – पापा, मरम्मत बाद में करवा लेंगे। अभी टाइम नहीं है।”
रामू दा गांव में अकेले हैं — खेत भी सूने, मन भी।
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स्थानीय हैंडलूम, ऑर्गेनिक खेती, और होमस्टे जैसे रोजगार को बढ़ावा
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गांवों में इंटरनेट और डिजिटल शिक्षा
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बच्चों को यहीं टेक-स्किल्स सिखाने की कोशिश
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युवा लौटेंगे, अगर उनके लिए सिस्टम बने
“शहर की चकाचौंध में जो खो गया है, वो गांव की मिट्टी में आज भी मिल सकता है।”
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अच्छी कहानी है। यही कहानी आजकल आपको हर गाँव में मिल जाएगी। पलायन नहीं करेंगे तो लोगों के बच्चे कैसे पलेंगे?